• केजरीवाल के खिलाफ मुकदमों के नतीजे पर टिका आप का राजनीतिक भविष्य

    केजरीवाल का राष्ट्रीय प्रभाव उनकी पार्टी के प्रदर्शन पर निर्भर करता है। आप के पास वर्तमान में लोकसभा में एक और राज्य सभा में दस सीटें हैं।

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    — कल्याणी शंकर
    वर्तमान में, आप का केवल 20 निर्वाचन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा। केजरीवाल का राष्ट्रीय प्रभाव उनकी पार्टी के प्रदर्शन पर निर्भर करता है। आप के पास वर्तमान में लोकसभा में एक और राज्य सभा में दस सीटें हैं। पार्टी ने अन्य राज्यों में अपना प्रभाव बढ़ाया है और अप्रैल 2023 में इसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया गया।

    ल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले एक दशक में कई बाधाओं को पार किया है। फिर भी, उनका अटूट लचीलापन प्रेरणा का प्रतीक रहा है। वह और उनकी पार्टी इस वक्त शराब नीति मामले में सबसे बड़े संकट का सामना कर रहे हैं।
    चुनौतियों के बावजूद केजरीवाल की राजनीतिक यात्रा उनकी अदम्य कर्मठता का प्रमाण है। 49 दिनों के संक्षिप्त कार्यकाल और 2014 में दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटें हारने के बाद, उन्होंने 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में 70 में से 67 सीटें हासिल करके उल्लेखनीय वापसी की।


    पिछले महीने दिल्ली शराब नीति मामले में केजरीवाल की गिरफ्तारी, जिसमें भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के आरोप शामिल हैं, ने आम आदमी पार्टी के भविष्य पर अनिश्चितता की छाया डाल दी है। क्या यह पार्टी की राह का अंत होगा, या क्या वे इस तूफान का सामना कर सकते हैं और अपनी राजनीतिक यात्रा जारी रख सकते हैं?
    शीर्ष अदालत द्वारा केजरीवाल को जमानत देने का फैसला, जिससे उन्हें मौजूदा चुनावों में अपनी पार्टी के लिए प्रचार करने की अनुमति मिल सकी, केजरीवाल के समर्थकों के लिए आशा की किरण है। यह सकारात्मक विकास केजरीवाल की सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है, खासकर अगर उन्हें जनता की सहानुभूति मिलती है।
    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कथित उत्पीड़न और अपने सहयोगियों की कैद को उजागर करते हुए केजरीवाल खुद को दमित व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करते हैं। केजरीवाल और उनकी पार्टी जनता को यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि जेल में उनके साथ कैसा दुर्व्यवहार किया गया और कैसे उन्हें इंसुलिन और मधुमेह की दवा देने से इनकार कर दिया गया।


    नवंबर 2012 में आम आदमी पार्टी(आप) की स्थापना के बाद से केजरीवाल की गिरफ्तारी पार्टी के लिए सबसे बड़ा संकट है। पार्टी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिसमें आंतरिक संघर्ष, भ्रष्टाचार के आरोप और आम आदमी की पार्टी के रूप में अपनी छवि बनाये रखने की आवश्यकता शामिल है। पिछले कुछ वर्षों में, इंडिया अगेंस्ट करप्शन के दिनों से केजरीवाल के कई सहयोगियों को हटा दिया गया है, समेत कई ऐसे आरोप हैं। केजरीवाल ने अपने इर्द-गिर्द केंद्रित एक व्यक्तित्व आधारित पार्टी की शुरुआत की है।


    आम आदमी पार्टी का सत्ता में आना काफी नाटकीय रहा है। इसकी शुरुआत 2011 में अन्ना हजारे के नेतृत्व में इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन से हुई थी। पार्टी कुछ ही महीनों के भीतर सत्ता में आ गई, लेकिन 48 दिनों में केजरीवाल का इस्तीफा आश्चर्यजनक नहीं था। हालांकि, अगले दो विधानसभा चुनावों में उन्होंने भारी बहुमत से जीत हासिल कर वापसी की। इन घटनाओं ने पार्टी के राजनीतिक प्रक्षेप पथ और केजरीवाल के लचीलेपन के बारे में जिज्ञासा जगा दी है।


    केजरीवाल हमेशा महत्वाकांक्षी रहे हैं। उन्होंने खुद को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया और 2014 में बनारस में मोदी के खिलाफ भी खड़े हुए लेकिन हार गये। इस साहसिक कदम से केजरीवाल और उनकी पार्टी का रुतबा काफी बढ़ गया।


    हाल ही में गठित इंडिया गठबंधन, जो एक महत्वपूर्ण राजनीतिक गठबंधन है और जिसका उद्देश्य भाजपा के प्रभुत्व को चुनौती देना है, में आप कांग्रेस के अलावा एक से अधिक राज्यों पर शासन करने वाली एकमात्र पार्टी के रूप में खड़ी है। यह गठबंधन उनकी पार्टी के दिल्ली और पंजाब से बाहर विस्तार का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
    हालांकि, वर्तमान में, आप का केवल 20 निर्वाचन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा। केजरीवाल का राष्ट्रीय प्रभाव उनकी पार्टी के प्रदर्शन पर निर्भर करता है। आप के पास वर्तमान में लोकसभा में एक और राज्य सभा में दस सीटें हैं। पार्टी ने अन्य राज्यों में अपना प्रभाव बढ़ाया है और अप्रैल 2023 में इसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया गया।


    भारतीय राजनीति में आम आदमी पार्टी का सत्ता में आना दिलचस्प है। भाजपा या वामपंथी दलों के विपरीत इसका कोई ठोस वैचारिक रुख नहीं है। यह ए.आई.ए. डी.एम.के., डी.एम.के., समाजवादी पार्टी, बीजू जनता दल, या राष्ट्रीय जनता दल जैसी क्षेत्रीय या समाजवादी पृष्ठभूमि पर निर्भर नहीं है। इसके बजाय, इसने भ्रष्टाचार-विरोधी और मुफ़्तखोरी संस्कृति के विकास का समर्थन करके शक्ति प्राप्त की है।


    आप अब दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के साथ लोकसभा चुनाव लड़ रही है, जबकि पंजाब में आप 13 सीटों पर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ रही है। यह गठबंधन केजरीवाल की राजनीतिक यात्रा के लिए एक आशाजनक दृष्टिकोण पेश करता है। आम आदमी पार्टी सिर्फ एक राजनीतिक इकाई नहीं है। यह कांग्रेस द्वारा छोड़े गये शून्य को भरने और हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात जैसे राजनीतिक रूप से द्विध्रुवीय राज्यों को लक्षित करने के लिए तैयार है।


    मोदी ने 'मोदी की गारंटी' का वायदा किया है, जबकि केजरीवाल ने दस सूत्री एजेंडे की रूपरेखा तैयार की है। इस एजेंडे में भारतीय भूमि को चीनी कब्जे से 'मुक्त' कराना शामिल है यदि इंडिया ब्लॉक ने केंद्र में सरकार बनाई। दिल्ली को राज्य का दर्जा दिलाना, 24/7 बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करना और मुफ्त शिक्षा प्रदान करने के वायदे केजरीवाल के राष्ट्रीय मुद्दों पर फोकस को दर्शाते हैं।


    दिल्ली शराब नीति मामला आम आदमी पार्टी के लिए असुविधाजनक हो गया है और भाजपा के लिए सुविधाजनक, चूंकि चुनाव चल रहे हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या यह आप के लिए सड़क का अंत है? क्या गोपाल राय, सौरभ भारद्वाज, संदीप पाठक, राघव चड्ढा और आतिशी जैसे दूसरे पायदान के नेता पार्टी चला सकते हैं, या केजरीवाल अपनी सामान्य किस्मत के साथ वापसी करेंगे?


    केजरीवाल आशावादी हैं और उम्मीद करते हैं कि भाग्य उनका साथ देगा। यह सकारात्मक दृष्टिकोण है। अब तक वह इसी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ते गये हैं। अगर उनकी पार्टी मौजूदा लोकसभा चुनाव में सम्मानजनक संख्या में सीटें हासिल कर लेती है तो उनकी लोकप्रियता बढ़ जायेगी। केवल मतदाता ही इस पर निर्णय ले सकते हैं और उनका निर्णय भारतीय राजनीति में केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के भविष्य को आकार देगा।

     

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